भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बे ज़ुबानों को बे ज़ुबां कहिये / रविंदर कुमार सोनी

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:49, 22 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रविंदर कुमार सोनी |संग्रह= }} {{KKCatGh...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बे ज़ुबानों को बे ज़ुबां कहिये
बे ज़ुबानी की दास्ताँ कहिये
रक़स करती हो ज़िन्दगी जिस में
कोई ऐसी भी दास्ताँ कहिये
बज़्म ए शेअर ओ सुख़न में है अब और
आप-सा कौन ख़ुशबयाँ कहिये
ये तो झगड़ा है दो दिलों का, आप
किस को लाएँगे दरमियाँ कहिये
हम को तो एक ही प्याले में
मिल गए जैसे दो जहाँ कहिये
हो गए उन से बे तआलुक़ हम
आप इसे दिल का इम्तिहाँ कहिये
दिल को कहिये जो रहनुमा ए अक़ल
अक़ल को दिल का पासबाँ कहिये
कारवान ए हयात क्यूँ है रवि
सू ए मंज़िल रवाँ दवाँ कहिये