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"बोलकर तुमसे / यश मालवीय" के अवतरणों में अंतर

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03:22, 10 नवम्बर 2007 का अवतरण

फूल सा हल्का हुआ मन
बोलकर तुमसे
आँख भर बरसा घिरा घन
बोलकर तुमसे

स्वप्न पीले पड़ गये थे
तुम गये जब से
बहुत आजिज़ आ गये थे
रोज़ के ढब से
मौन फिर बुनता हरापन
बोलकर तुमसे

तुम नहीं थे, ख़ुशी थी
जैसे कहीं खोई
तुम मिले तो ज्यों मिला
खोया सिरा कोई
पा गये जैसे गड़ा धन
बोलकर तुमसे