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"ब्रह्माण्ड एक आवाज़ है / अशोक शाह" के अवतरणों में अंतर

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पसरी चादर नीरवता की
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झूम उठते हैं किसलय
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जब जब चूमता उन्हें पवन
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बिखराकर सुगन्ध चहॅु ओर
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आत्ममुग्ध हैं शाख सुमन
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कभी सुना हमने विहगों का
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सुबह-शाम का कलरव
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और दृढ़ विश्‍वास  मुझे है
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सुना नहीं अपना ही अनुभव
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सम्पूर्ण नीरवता में खड़े
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सुना नहीं वृक्ष के रव को
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उसके तने से कान सटाये
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शिराओं में बहते पय को
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प्रकृति एक है पूर्ण ध्वनि
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ब्रह्माण्ड वही पूर्ण प्रणाद
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हर रचना है एक निनाद
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बिना सृजन भी गहरी आवाज़
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नाद के भीतर अन्तर्नाद है
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भीतर के भीतर और भी गहरा
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ध्वनन होता रहता अनवरत
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अप्रतिम अनहद नाद है
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रूप-विरूप से ध्वनित होती
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अक्षुण्ण निनादित तान है
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बिना आवाज़ के
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नहीं नीरवता
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सम्पूर्ण आवाज़ है
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पूर्ण नीरवता
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चलो सुनते हैं एक आवाज़
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बाहर भीतर बेआवाज़
  
 
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22:13, 7 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

ध्वनि नहीं मोहताज माध्यम की
नहीं निःशब्दता शब्दों की
भीतर बाहर इनसे भी गहरी
पसरी चादर नीरवता की

झूम उठते हैं किसलय
जब जब चूमता उन्हें पवन
बिखराकर सुगन्ध चहॅु ओर
आत्ममुग्ध हैं शाख सुमन

कभी सुना हमने विहगों का
सुबह-शाम का कलरव
और दृढ़ विश्‍वास मुझे है
सुना नहीं अपना ही अनुभव

सम्पूर्ण नीरवता में खड़े
सुना नहीं वृक्ष के रव को
उसके तने से कान सटाये
शिराओं में बहते पय को

प्रकृति एक है पूर्ण ध्वनि
ब्रह्माण्ड वही पूर्ण प्रणाद
हर रचना है एक निनाद
बिना सृजन भी गहरी आवाज़

नाद के भीतर अन्तर्नाद है
भीतर के भीतर और भी गहरा
ध्वनन होता रहता अनवरत
अप्रतिम अनहद नाद है
रूप-विरूप से ध्वनित होती
अक्षुण्ण निनादित तान है

बिना आवाज़ के
नहीं नीरवता
सम्पूर्ण आवाज़ है
पूर्ण नीरवता
चलो सुनते हैं एक आवाज़
बाहर भीतर बेआवाज़