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"भय / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर

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आओ चले उस गाँव
+
बहुत डर लगता है मित्र
जहाँ झड़ते अनायास
+
पहाड़ की कोई पसली जब टूटकर
पके फल - डाल-डाल छाँव- छाँव
+
ढलानो से लुढ़कती चली जाती है
चलो जीयें उस पेड़ की छाँव
+
आँखें बंद कर लेता हूँ
जिसका वह एक फल
+
जब कोई देवदार
‘झाँणों- मनसा’  ने
+
औंधे मुँह गिरता है
चखा था आधा-आधा
+
राजमार्ग अवरुद्ध हो जाता है
रह गए थे देखते
+
स्क्रीन पर दिखाए जाते हैं
छूट गया था बीज 
+
अनगिनत शव
उसी पेड़ की छाँव
+
और वाचक उसी मुस्कान के साथ
बीज -दर –बीज
+
पढ़ता है दुर्घटना के समाचार
उगते रहे किनते ही शाखी
+
झड़ते रहे कितने फल
+
स्तब्ध रहा पहाड़ों का
+
परस्पर टकराना
+
थक गया
+
गाँव से गाँव  सुलगना  
+
गूँजता रहा ‘पवाड़ा’ हर घाटी,गाँव-गाँव
+
  
काया हो जाओ
+
सहम जाते हूँ
तुम उस फल की  
+
मेरा भाई जब
 
+
जुदा रहने की बात करता है
बीज हो जाता हूँ मैं
+
बूढ़ी माँ मर जाने को कहती है
और उगते रहें बार-बार
+
और पत्नि करती है प्रार्थना
घाटी-घाटी गाँव-गाँव
+
संभल कर जाने और्
 +
जल्दी लौट आने की
 +
यहाँ तक कि बेटा भी
 +
कैंसर होने से आगाह करता है
 +
बीड़ी न पीने को कहता है
 +
बस-अड्डे के बोर्ड पर
 +
लिखा रहता है
 +
एडस का कोई इलाज नहीं
 +
ग्रहण न करें बिना जाँच
 +
किसी का ख़ून
 +
सुनो मित्र!
 +
तुम बताओ
 +
इतनी चेतावनियों के बीच जीना
 +
क्या आसान है?
 
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20:41, 19 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

बहुत डर लगता है मित्र
पहाड़ की कोई पसली जब टूटकर
ढलानो से लुढ़कती चली जाती है
आँखें बंद कर लेता हूँ
जब कोई देवदार
औंधे मुँह गिरता है
राजमार्ग अवरुद्ध हो जाता है
स्क्रीन पर दिखाए जाते हैं
अनगिनत शव
और वाचक उसी मुस्कान के साथ
पढ़ता है दुर्घटना के समाचार

सहम जाते हूँ
मेरा भाई जब
जुदा रहने की बात करता है
बूढ़ी माँ मर जाने को कहती है
और पत्नि करती है प्रार्थना
संभल कर जाने और्
जल्दी लौट आने की
यहाँ तक कि बेटा भी
कैंसर होने से आगाह करता है
बीड़ी न पीने को कहता है
बस-अड्डे के बोर्ड पर
लिखा रहता है
एडस का कोई इलाज नहीं
ग्रहण न करें बिना जाँच
किसी का ख़ून
सुनो मित्र!
तुम बताओ
इतनी चेतावनियों के बीच जीना
क्या आसान है?