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भरथरी लोकगाथा का प्रसंग “शंकर पूजा, चम्पा को शंकर दर्शन”

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हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी वो

हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी य

भोलेबाबा ल वो, शंकरजी ल ना

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी य

भोलेबाबा ल वो, शंकरजी ल ना

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

बेल पान दुबी, दुधी रखेंव पूजा के थारी म

बेल पान नरियर दुबी रखेंव खलोक थारी म

बेल पान दुबी, दुधी रखेंव पूजा के थारी म

रखेंव पूजा के थारी म, रखेंव पूजा के थारी म

बिगड़ी बना दे मोरे, आयेंव तोर दवारी म

आयेंव तोर दवारी म, आयेंव तोर दवारी म

हाथ जोड़के माथ मैं नवावंव दीदी वो

शंकरबाबा ल वो, भोलेबाबा ल वो

शंकरबाबा ल वो, दीदी भोलेबाबा ल वो

हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी य

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

माथ म चंदन तोरे, गले में नाग लपटे हे

गला में नाग लपटे हे, गला में नाग लपटे हे

मिरगा के छाला पहिने, जटा में गंगा लटके हे

जटा में गंगा लटके हे, जटा में गंगा लटके हे

सावन सोमवारी के गोहरावंव दीदी वो

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी य

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

एक हाथ म जामुन धरे, दूसर म तिरछुल

दूसर म तिरछुल, बाबा दूसर म तिरछुल

अंगभरे राख चुपरे, गांजा ल पीये फुकफुक

गांजा ल पीये फुकफुक, गांजा ल पीये फुकफुक

इ गोधरे गांजा ल पीके गुस्साए हाबय वो

शंकरजी ल वो, दीदी भोलेबाबा ल वो

शंकरबाबा ल वो, दीदी भोलेबाबा ल वो

हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी य

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो

– गाथा –

अब ये चम्पा दासी राहय ते रागी (हौव)

भगवान भोलेनाथ के पूजा करथे (हा)

भोलेनाथ राहय ते प्रसन्न हो जथे (हौव)

अउ किथे (हा)

बेटी (हा)

बेटी ते सो माँग, मे सो देबर तैयार हंव (हौव)

तब किथे बाबा (हा)

मोर ऊपर विपत आगे हे (हौव)

में का बताव बाबा (हा)

मोर बात ल रानी सामदेवी समझत नई ये (हा)

अउ बस मोला मार के (हौव)

चारझन दीवान ला आदेश देवा देहे (हा)

अउ फांसी देके ऑर्डर दे देहे (हौव)

अब मे फांसी में चढ़हूं बाबा (हौव)

तब भोलेनाथ किथे (हा)

जा बेटी (हौव)

तोला चिंता करे के बात नईये (बात नईये)

चम्पा दासी राहय तेन (हौव)

जाथे सुग्घर घर में (हा)

पीताम्बरी के साड़ी पहिन लेथे रागी (हौव)

पहिने के बाद (हा)

चारझन कहार रिथे डोला बोहईया (हौव)

जब डोला में बईठथे (हा)

तब, सब सखी सहेली रिथे (हौव)

मिलथे भेंटथे (हा)

अउ रोथे, अउ किथे बहिनी हो (हा)

जईसे में ससुराल जातहव (हौव)

वइसे मोला समझव, में जिंदगी भरके लिए फांसी में चघत हौव (हा)

अब ये चारझन कहार राहय तेन रागी (हौव)

ले जाथे (हा)

तब चम्पा दासी काय किथे जानत हस (हौव)

– गीत –

बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा या

सुनले कहार मोर बाते ल

बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा वो

सुनलव कहार मोर बाते ल

सौ शर्त जगा, तोला देवथव दान

सवर पति के गा, तोला देवथव दान

येदे तरी में डोला धिर-लमाबे गा, धिर-लमाबे गा, भाई येदे जी

येदे तरी में डोला धिमाबे गा, धिमाबे गा, भाई येदे जी

धिरे-च-धिर ये जावत थे, मोर जावय दीदी

डोला ल लेगथे राते के

धिरे-च-धिर ये जावत थे, मोर जावय दीदी

डोला ल लेगथे राते के

तरिया के पारे में वो, डोला रखे हावय

तरिया के पारे में वो, डोला रखे हावय

येदे चम्पा ह डोला ले उतरत थे, येदे उतरत थे, भाई येदे जी

येदे चम्पा ह डोला ले उतरत थे, येदे उतरत थे, भाई येदे जी