भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भरी हुई है प्रीत से / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
भरी हुई है प्रीत से सभी के मन की झोलियाँ | भरी हुई है प्रीत से सभी के मन की झोलियाँ | ||
− | भले ही अपने सामने नए-नए सवाल | + | भले ही अपने सामने नए-नए सवाल हों |
मगर हर सवाल का जवाब हम जवाब तुम | मगर हर सवाल का जवाब हम जवाब तुम | ||
भले ही हम में तुम में कुछ रूप-रंग में भेद हो | भले ही हम में तुम में कुछ रूप-रंग में भेद हो | ||
− | है | + | है खुशबुओं में फ़र्क क्या गुलाब हम गुलाब तुम |
− | चलो कि आज मिल के साथ राष्ट्र वन्दना करें | + | चलो कि आज मिल के साथ राष्ट्र-वन्दना करें |
− | सभी | + | सभी दिलों में एक रंग सिर्फ प्यार का भरें |
− | चलो कि आज मिल के हम | + | चलो कि आज मिल के हम खाएँ ये एक क़सम |
− | स्वदेश के लिए | + | स्वदेश के लिए जिएँ-स्वदेश के लिए मरें |
− | + | तुम्हें क़सम है कि तुम कभी न एक पल भी टूटना | |
− | + | कि देश के खुले नयन, ख़्वाब हम ख़्वाब तुम | |
</poem> | </poem> |
09:47, 6 जून 2010 का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
भरी हुई है प्रीत से सभी के मन की झोलियाँ
भले ही अपने सामने नए-नए सवाल हों
मगर हर सवाल का जवाब हम जवाब तुम
भले ही हम में तुम में कुछ रूप-रंग में भेद हो
है खुशबुओं में फ़र्क क्या गुलाब हम गुलाब तुम
चलो कि आज मिल के साथ राष्ट्र-वन्दना करें
सभी दिलों में एक रंग सिर्फ प्यार का भरें
चलो कि आज मिल के हम खाएँ ये एक क़सम
स्वदेश के लिए जिएँ-स्वदेश के लिए मरें
तुम्हें क़सम है कि तुम कभी न एक पल भी टूटना
कि देश के खुले नयन, ख़्वाब हम ख़्वाब तुम