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भले ही दूर नज़र से सदा रहा हूँ मैं / गुलाब खंडेलवाल

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भले ही दूर नज़र में सदा रहा हूँ मैं
महक तो आपकी साँसों की पा रहा हूँ मैं

मिलेगा कुछ तो उजाला भटकनेवालों को
चिराग़ अपने लहू से जला रहा हूँ मैं

निशान आपके क़दमों के मिल न पाते हों
निशान सर की रगड़ से बना रहा हूँ मैं

ज़माना हो गया आँखों का खेल चलते हुए
गले से आज तो लगिए कि जा रहा हूँ मैं

किसीने अपनी उँगलियों से छू दिया है, गुलाब
नहीं पता भी मुझे अब कि क्या रहा हूँ मैं