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"भाई! हौं अवध कहा रहि लैहौं / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

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भाई! हौं अवध कहा रहि लैहौं।
 
भाई! हौं अवध कहा रहि लैहौं।
 
राम-लकन-सिय-चरन बिलोकन काल्हि काननहिं जैहौं॥
 
राम-लकन-सिय-चरन बिलोकन काल्हि काननहिं जैहौं॥
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तुलसी यों कहि चले भोरहीं, लोग बिकल सँग लागे।
 
तुलसी यों कहि चले भोरहीं, लोग बिकल सँग लागे।
 
जनु बन जरत देखि दारुन दव निकसि बिहँग मृग भागे॥
 
जनु बन जरत देखि दारुन दव निकसि बिहँग मृग भागे॥
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22:44, 26 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

भाई! हौं अवध कहा रहि लैहौं।
राम-लकन-सिय-चरन बिलोकन काल्हि काननहिं जैहौं॥
जद्यपि मोतें, कै कुमातु, तैं ह्वै आई अति पोची।
सनमुख गए सरन राखहिंगे रघुपति परम सँकोची॥
तुलसी यों कहि चले भोरहीं, लोग बिकल सँग लागे।
जनु बन जरत देखि दारुन दव निकसि बिहँग मृग भागे॥