भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भाई से भाई रूठा है / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है /...)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
<poem>
 
<poem>
भाई से  भाई  रूठा है
+
भाई   से  भाई  रूठा है
घर कितना सूना लगता है
+
घर कितना सूना लगता है
  
 
एक पुराने वक़्त का चेहरा
 
एक पुराने वक़्त का चेहरा
पंक्ति 27: पंक्ति 27:
 
सुख के अन्दर दुख रहता है
 
सुख के अन्दर दुख रहता है
  
रिश्ते छिन लिए टी.वी. ने,
+
रिश्ते छीन लिए टी.वी. ने,
 
मैं तन्हा, तू भी तन्हा है.
 
मैं तन्हा, तू भी तन्हा है.
 
</poem>
 
</poem>

20:05, 8 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण

भाई से भाई रूठा है
घर कितना सूना लगता है

एक पुराने वक़्त का चेहरा
मेरी एलबम में रक्खा है

उसने पूछा आँख का आँसू
मैंने कहा कि सरमाया है

आज हवा सरशार हुई है
आज चराग़ों का जलसा है

कंगालों की इस बस्ती में
फेरी वाला कब आया है?

बकरे को मालूम है उसका
इन्सानों से क्या रिश्ता है

अब मैं इस माया को समझा
सुख के अन्दर दुख रहता है

रिश्ते छीन लिए टी.वी. ने,
मैं तन्हा, तू भी तन्हा है.