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"भाव-कलश (ताँका--संग्रह) / रचना श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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[[रचना श्रीवास्तव]] ने जोरदार आवाज़ में शब्दों के बोलने का अहसास करवाया है । शब्दों की फरियाद है कि उनको किताबों में ही बन्द न  रखो, ऐसा करने से दीमक खा जाएगी । इसीलिए किसी  कही गई बात को उपयोग में लाना जरूरी है -
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पन्नो में शब्द
 
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बंद रहे सदियों  
 
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21:38, 11 अप्रैल 2012 का अवतरण

रचना श्रीवास्तव ने जोरदार आवाज़ में शब्दों के बोलने का अहसास करवाया है । शब्दों की फरियाद है कि उनको किताबों में ही बन्द न रखो, ऐसा करने से दीमक खा जाएगी । इसीलिए किसी ताँका कही गई बात को उपयोग में लाना जरूरी है -

पन्नो में शब्द
बंद रहे सदियों
घुटती साँसें
दीमक -ग्रास बने
बिखरे आधे होके