भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भीजो मोरी नवरंग चुनरी / मीराबाई

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:55, 19 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} <poem> भीजो मोरी नवरंग चुनरी। काना लागो त...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भीजो मोरी नवरंग चुनरी। काना लागो तैरे नाव॥ध्रु०॥
गोरस लेकर चली मधुरा। शिरपर घडा झोले खाव॥१॥
त्रिभंगी आसन गोवर्धन धरलीयो। छिनभर मुरली बजावे॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल चित लागो तोरे पाव॥३॥