भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भुखमरी की ज़द्फ़ में है या दार के साए में है / अदम गोंडवी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:19, 7 जनवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अदम गोंडवी |अनुवादक= |संग्रह=धरती...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है
अहले हिन्दुस्तान अब तलवार के साये में है
छा गई है जेहन की परतों पर मायूसी की धूप
आदमी गिरती हुई दीवार के साये में है
बेबसी का इक समंदर दूर तक फैला हुआ
और कश्ती कागजी पतवार के साये में है
हम फ़कीरों की न पूछो मुतमईन वो भी नहीं
जो तुम्हारी गेसुए खमदार के साये में है