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"भूखण्ड से गुज़रते हुए / तुलसी रमण" के अवतरणों में अंतर

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लाशों के ढेर पर
+
पहाड़ के जिस्म का
उमड़ पड़ते हैं छायाकार
+
एक-एक टुकड़ा
लाशों के गणित में व्यस्त
+
पूरे-पूरे दिन में  
              नामानिगार
+
तराशता आदमी
और कुछ ताजा भय
+
बना डालता है  
पसर जाता है  
+
    एक सीढ़ी
लाशों के छपे
+
          पत्थर की
            चित्रों के साथ
+
पहाड़ के जिस्म से
शहर बन्द रहेगा
+
एक बाल
कई दूसरे प्रदेशों और
+
पेड़ देवदार का उतारकर
शहरों के साथ
+
टुकड़ों-टुकड़ों में चीर-काट
हाजिर है वही समाचार
+
नक्काशी कर जोड़ता है  
कहां से आता है समाचार
+
एक सीढ़ी
मस्तिस्क के किस कोने बैठ
+
लक्कड़ की
जाने कौन उगाता है  
+
पहाड़ की कठोर देह पर  
              समाचार
+
खरोंचे मार-मार
हर बस रोके जाने पर
+
बिछा देती है आदमी
तैयार हो जाते हैं बच्चे
+
      एक सीढ़ी
अगले दिन के लिए
+
             खेतों की
कुछ डबल रोटियां
+
पत्थर, लक्कड़ और
कुछ अंडे और
+
मिट्टी का अंतरंग
पापा की सिगरेट
+
पारदर्शी है
          लाने के लिए
+
पहाड़ की ढलान पर  
खिड़कियों पर पर्दे लगा
+
              आदमी
भीतर बन्द होता है शहर
+
इस आदमी ने सोख रखी है  
बाहर खुला मंडराता है  
+
सयाले की बर्फ़ में  
             पिशाच
+
दबी आग
पर्दे को जरा-सा उठा
+
और चैत में कूजे की
बार-बार देखते हैं बच्चे
+
      खुशबू
कहीं कुछ भी तो नहीं
+
समा गया है भीतर
सुनसान में कांपती
+
आषाढ़ की दोपहरी में
एक चिड़िया के सिवा
+
ढलान पर रंभाती
बाहर मत झांको बच्चों
+
गाय का गऊपन
चुपचाप बैठे रहो
+
और धुंध के दबे
भीतर उस कमरे में’
+
सावनी पहाड़ के  
पापा की जुबान पर  
+
सीने से उतरते
नाचता है पिशाच
+
      निर्झर का संगीत
बच्चे सरका देते हैं पर्दा
+
 
किसी दूसरी खिड़की तलाश में
+
बूढ़े पहाड़ के कंधों पर खेलता
उड़ जाती है चिड़िया
+
चढ़ता फिसलता
बच्चों की आंखों में  
+
बस पूरा हो जाता है  
डबडबाते हैं सवाल
+
ढलान पर आदमी</poem>
क्या होता है बन्द?
+
कैसा होता है पिशाच?
+
और क्यों बाहर निकल उसे
+
डंडे से भगा नहीं आते पापा?
+
क्यों छोड़ देती हैं गाड़ियां
+
खाली सड़क उसके लिए?
+
क्यों डरते हैं लोग पिशाच से?
+
क्यों मारे जाते हैं वे
+
        इस बन्द के लिए?
+
कॉल-बैल पर उंगली पड़ते ही
+
+
भीतर दन-दनाती है
+
स्टेनगन आदमी के लिए नहीं
+
बन्दूक के लिए खुलता है
+
शहर का हर दरवाज़ा
+
बन्दूक की नाली के नीचे
+
थरथराता है
+
      भूखण्ड
+
शीशों की खिड़कियों पर  
+
कपड़े के पर्दे सरका
+
बन्द होती है चिड़िया
+
आज इक्कीस घोंसले
+
        और उजड़ गए
+
फिर वही समाचार
+
बड़ी संवेदना समाचारों में
+
डूब जाता यह समाचार
+
बन्दूक की आवाज सुनकर
+
सयाले में पहले ही
+
परदेस में उड़ी कितनी ही चिड़ियाँ
+
लौटती नहीं घोंसलों में
+
              चिड़ियाँ
+
और स्थिति दी जाती है सामान्य करार
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01:03, 15 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

पहाड़ के जिस्म का
एक-एक टुकड़ा
पूरे-पूरे दिन में
तराशता आदमी
बना डालता है
    एक सीढ़ी
          पत्थर की
पहाड़ के जिस्म से
एक बाल
पेड़ देवदार का उतारकर
टुकड़ों-टुकड़ों में चीर-काट
नक्काशी कर जोड़ता है
एक सीढ़ी
लक्कड़ की
पहाड़ की कठोर देह पर
खरोंचे मार-मार
बिछा देती है आदमी
       एक सीढ़ी
             खेतों की
पत्थर, लक्कड़ और
मिट्टी का अंतरंग
पारदर्शी है
पहाड़ की ढलान पर
              आदमी
इस आदमी ने सोख रखी है
सयाले की बर्फ़ में
दबी आग
और चैत में कूजे की
      खुशबू
समा गया है भीतर
आषाढ़ की दोपहरी में
ढलान पर रंभाती
गाय का गऊपन
और धुंध के दबे
सावनी पहाड़ के
सीने से उतरते
      निर्झर का संगीत

बूढ़े पहाड़ के कंधों पर खेलता
चढ़ता फिसलता
बस पूरा हो जाता है
ढलान पर आदमी