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{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|संग्रह=साये में धूप / दुष्यन्त दुष्यंत कुमार
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal‎}}‎<poem>भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ ।
भूख है मौत ने तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ <br>धर दबोचा एक चीते कि तरह आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ| <br><br>ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ ।
मौत ने तो धर दबोचा एक चीते कि तरह <br>गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही ज़िंदगी ने जब छुआ फ़ासला रखकर छुआ| <br><br>पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ ।
गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही <br>क्या वज़ह है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ| <br><br>लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुँआ ।
क्या वज़ह आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को आप के भी ख़ून का रंग हो गया है प्यास ज्यादा तेज़ लगती है यहाँ <br>लोग कहते हैं कि पहले इस जगह पर था कुआं| साँवला । <br><br>
आप दस्ताने पहनकर छू रहे हैं आग को <br>इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो आप के भी खून का रंग हो गया है सांवला| जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुँआ । <br><br>
इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो <br>दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो जब तलक खिलते नहीं ये कोयले देंगे धुआं| <br><br>उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ ।
दोस्त, अपने मुल्क कि किस्मत पे रंजीदा न हो <br>उनके हाथों में है पिंजरा, उनके पिंजरे में सुआ| <br><br> इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात <br>अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियां|<br>खिड़कियाँ ।<br/poem>