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''' भूलने का रिवाज़ ''' भूलने का रिवाज़काल की तेज रफ्तार कोपछाड़कर बहुत आगे निकल गया है फैक्ट्रियों के बलगम कोठियों की खखारआफिसों की मूतऔर चिमनियों के मलसे बने भृगु के नीचे दब-पिचकर सोंधी मिट्टी और चितकबरे पत्थर गायब हो चुके हैंहमारे सहज एहसासों से  पुरातात्त्विक स्मृतिशालाओं तक में खलिहानों से आने वाली गंवार हवाएं, और पनघटों से उठने वाली पनिहारिनों की किलकाहटलुप्तप्राय हो चुकी है  भूलने की ज़द्दोज़हद में कौमार्य देहाती आब्सेशन बन चुका है,मर्दानी हेयर स्टाइल वाली लड़कियां जूड़ों और चोटियों कोमोहनजोदड़ो की औरतों तक हीसीमित रखना चाहती हैं,सेक्स को नितम्बस्थ न मानकरहोठों पर अवस्थित रखती हैं.