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भूली / भगवती चरण शर्मा 'निर्मोही'

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औ भुली<ref>छोटी बहन</ref> तू आज मिलिले, मैं छ जाणू दूर तेरो,
ऐ<ref>आ</ref> नि सकदो यख कभी, फिर छोड़ियाले आज डेरो।
ऐ गये मौका इनू यो, एक पल भी टल नि सकदो,
रुकण को भी क्वी बहानो, द्वी घड़ी को चल नि सकदो।

2.

पीठि को फाडो<ref>सगा</ref> तेरो यो, दूर त्वै<ref>तुम</ref> से आज ह्वैगे,
मोह-ममता छोड़िकी तैं, जाणकू तैयार ह्वैगे।
भेंटिले कुछ बोलिले, जो कुछ छ मन की बात तेरी,
रै<ref>रह</ref> जाली कुछ ही दिनूँ मा, आखिरी या याद मेरी।

3.

हौर<ref>अन्य</ref> छै छन भै<ref>भाई</ref> त्यरा भुलि, मैं सनैं<ref>को</ref> तू भूलि जाई,
याद कै<ref>कर-कर</ref> कै की बणू मा, ना खुदै<ref>याद</ref> की गीत गाई।
भै औला त्वै मू सदा ही, रीत भी त्वै सन जणाला,
मैत<ref>मायका</ref> को बाटो बताला, सब तरह त्वै सन<ref>को</ref> मनाला।

4.

ये भयादूजी कु<ref>को</ref> तैं तू, ल्हे फुलों माला बणैकी,
भेटदे सब भाइयों सन, सैंद्वाणी<ref>सहारा</ref> अपणी बणैकी।
राखड़ी त्योहार आलो, अब आली होली-दीवाली,
औन्दु रै तू मैत अपणा, जाण ना दे बार खाली।

5.

हौर सब मैं भूलि जाला, माँ त नी सकदी भुलाई,
माँ सणै<ref>को</ref> तू भूलि की भी, याद ना मेरी दिलाई।
ह्वै सको धीरज बँधाई, प्राण सन वीं का बुझाई,
बात करदी वक्त रोकी मन, ना तू आँसू बगाई।

शब्दार्थ
<references/>