भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भोला बालक है भला कैसे सताऊँ उसको / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |संग्रह=आंखों में आसमान / ज्ञ...) |
|||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
सुख के बाज़ार में कैसे मैं चलाऊँ उसको | सुख के बाज़ार में कैसे मैं चलाऊँ उसको | ||
− | सर्द | + | सर्द रातों में यही चिन्ता रही है मुझको |
एक आकाश है ओढ़ूँ कि बिठाऊँ उसको | एक आकाश है ओढ़ूँ कि बिठाऊँ उसको | ||
− | अजनबी गाँव में ता-उम्र रही | + | अजनबी गाँव में ता-उम्र रही ये हसरत |
− | + | बनके अपना कोई रूठे तो मनाऊँ उसको | |
एक मिट्टी का दीया और अँधेरा इतना | एक मिट्टी का दीया और अँधेरा इतना |
23:00, 11 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
भोला बालक है भला कैसे सताऊँ उसको
राह की भीड़ मे क्यों छोड़ के जाऊँ उसको
दर्द मेरा है किसी खोटी अठन्नी जैसा
सुख के बाज़ार में कैसे मैं चलाऊँ उसको
सर्द रातों में यही चिन्ता रही है मुझको
एक आकाश है ओढ़ूँ कि बिठाऊँ उसको
अजनबी गाँव में ता-उम्र रही ये हसरत
बनके अपना कोई रूठे तो मनाऊँ उसको
एक मिट्टी का दीया और अँधेरा इतना
सोचता हूँ कि जलाऊँ या बुझाऊँ उसको ?