भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मंज़िलें क्या हैं रास्ता क्या है / आलोक श्रीवास्तव-१" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-१ |मंज़िलें क्या...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
  
 
जब भी चाहेगा छीन लेगा वो
 
जब भी चाहेगा छीन लेगा वो
सब उसी का है आपका क्या है
+
सब उसी का है, आपका क्या है
  
 
तुम हमारे क़रीब बैठे हो
 
तुम हमारे क़रीब बैठे हो
अब दवा कैसी अब दुआ क्या है
+
अब दवा कैसी, अब दुआ क्या है
  
चाँदनी आज किस लिए नम है
+
चाँदनी आज किसलिए नम है
 
चाँद की आँख में चुभा क्या है
 
चाँद की आँख में चुभा क्या है
  

19:33, 25 मार्च 2022 के समय का अवतरण

मंज़िलें क्या हैं रास्ता क्या है
हौसला हो तो फ़ासला क्या है

वो सज़ा देके दूर जा बैठा
किससे पूछूँ मेरी ख़ता क्या है

जब भी चाहेगा छीन लेगा वो
सब उसी का है, आपका क्या है

तुम हमारे क़रीब बैठे हो
अब दवा कैसी, अब दुआ क्या है

चाँदनी आज किसलिए नम है
चाँद की आँख में चुभा क्या है

ख़्वाब सारे उदास बैठे हैं
नींद रूठी है, माजरा क्या है

बेसदा काग़ज़ों में आग लगा
अपने रिश्ते को आज़्मा, क्या है

गुज़रे लम्हों की धूल उड़ती है
इस हवेली में अब रखा क्या है