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"मंहगाई / वंशीधर शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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हमका चूसि रही मंहगाई।
 
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रुपया रोजु मजूरी पाई, प्रानी पाँच जियाई,  
 
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पाँच सेर का खरचु ठौर पर, सेर भरे माँ खाई।  
 
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छा दुपहरी खराबु करी तब कहूँ किलो भर पाई।
 
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जिनकी करी नउकरी उनते नाजउ मोल न पाई,  
 
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खीसइ बावति फिरी गाँव माँ हारि बजारइ जाई।
 
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लरिका घूमइं बांधि लंगोटा जाडु रहा डिड़ियाई।
 
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खेती वाले गल्ला धरि धरि रहे मुनाफा खाई,  
 
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हमरे लरिका भूखे तरसइं उइ देखइं अठिलाई।  
 
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गन्ना गोहूँ बेंचि बेंचि के बैंकइ रहे भराई।  
 
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सबते ज़्यादा अफसर डाहइं औ डाहइं लिडराई,
 
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पार्टी बंदा अउरउ डाहइं जेलि देइं पहुंचाई।  
 
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बड़ी हउस ते ओटइ दइ दइ राजि पलटि मिलि जाई  
 
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अब खपड़ी पर बइठि कांग्रेस हड्डी रही चबाई।  
 
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ओट देइ के समय पारटी लालच देंय बिछाई  
 
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बादि ओट के अइसा काटइं, जस लौकी चउराई।  
 
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हमइं कहूँ ते मिलइ न कर्जा हाय हाय हउहाई।  
 
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हमका चूसि रही मंहगाई।
 
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बढ़िया भुईं माँ जंगल रोपइं ताल झील अपनाई  
 
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गाँव की परती दिहिसि हुकूमत दस फीसदी छोड़ाई।  
 
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ऊसर बंजर जोता चाही चट्ट लेइं छिनवाई।  
 
ऊसर बंजर जोता चाही चट्ट लेइं छिनवाई।  
 
हमका चूसि रही मंहगाई।
 
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जो कछु हमरी सुनइ हुकूमत तौ हम बिनय सुनाई  
 
जो कछु हमरी सुनइ हुकूमत तौ हम बिनय सुनाई  
 
सबकी खेती नीकि हमइं जंगलइ देत जुतवाई।  
 
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कइसे प्राण बचइं बिन खाए खाना कहाँ ते लाई।  
 
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सुनित रहइ जिमिदार न रहिहइं तब जमीन मिलि जाई  
 
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अब उनके दादा बनि बइठे सभापती दुखदाई।  
 
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हम भुइंहीन सदा से, खेती हमइ न कोउ दइ पाई।  
 
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हमते कहइं की की भुइं पर कब्जा लेहु जमाई  
 
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फिरी थोरे दिन माँ पटवारी अधिवासी लिखि जाई।  
 
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उनके लरिका हमका कोसिहइं हम बेइमान कहाई।  
 
उनके लरिका हमका कोसिहइं हम बेइमान कहाई।  
 
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हम होई बीमार डरन माँ अस्पताल ना जाई  
 
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हुंवउ लगि रही संतति निग्रह इंद्री लेइ कटाई।  
 
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हमरे तीनि जनेन का देखे उनकी फटइं बेवाई।  
 
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नफाखोर मेढुका अस फूलइं हमरा सबु डकराई  
 
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थानेदार जवानी देखे पिस्टल देंइ धराई।  
 
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जो जेत्ता बेइमान वत्तिहे तोंदन पर चिकनाई।  
 
जो जेत्ता बेइमान वत्तिहे तोंदन पर चिकनाई।  
 
हमका चूसि रही मंहगाई।
 
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पार्टीबिंदी न्याय नीति अउ राजनीति ठगहाई  
 
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कोऊ नहीं सुनइ कोऊ की मउत रही डिड़ियाई।
 
कोऊ नहीं सुनइ कोऊ की मउत रही डिड़ियाई।
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हमका चूसि रही मंहगाई।  
 
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09:45, 7 नवम्बर 2013 के समय का अवतरण

हमका चूसि रही मंहगाई।

रुपया रोजु मजूरी पाई, प्रानी पाँच जियाई,
पाँच सेर का खरचु ठौर पर, सेर भरे माँ खाई।
सरकारी कंट्रोलित गल्ला हम ना ढूँढे पाई,
छा दुपहरी खराबु करी तब कहूँ किलो भर पाई।
हमका चूसि रही मंहगाई।

जिनकी करी नउकरी उनते नाजउ मोल न पाई,
खीसइ बावति फिरी गाँव माँ हारि बजारइ जाई।
लोनु तेलु कपड़न की दुरगति दारि न देखइ पाई
लरिका घूमइं बांधि लंगोटा जाडु रहा डिड़ियाई।
हमका चूसि रही मंहगाई।

खेती वाले गल्ला धरि धरि रहे मुनाफा खाई,
हमरे लरिका भूखे तरसइं उइ देखइं अठिलाई।
खेती छीने फारम वाले ट्रेक्टर रहे चलाई,
गन्ना गोहूँ बेंचि बेंचि के बैंकइ रहे भराई।
हमका चूसि रही मंहगाई।

सबते ज़्यादा अफसर डाहइं औ डाहइं लिडराई,
पार्टी बंदा अउरउ डाहइं जेलि देइं पहुंचाई।
बड़ी हउस ते ओटइ दइ दइ राजि पलटि मिलि जाई
अब खपड़ी पर बइठि कांग्रेस हड्डी रही चबाई।
हमका चूसि रही मंहगाई।
 
ओट देइ के समय पारटी लालच देंय बिछाई
बादि ओट के अइसा काटइं, जस लौकी चउराई।
खेती वालन का सरकारउ कर्जु देइ अधिकाई
हमइं कहूँ ते मिलइ न कर्जा हाय हाय हउहाई।
हमका चूसि रही मंहगाई।

बढ़िया भुईं माँ जंगल रोपइं ताल झील अपनाई
गाँव की परती दिहिसि हुकूमत दस फीसदी छोड़ाई।
देखि न परइ भुम्मि अलबेली खेती करइ न पाई
ऊसर बंजर जोता चाही चट्ट लेइं छिनवाई।
हमका चूसि रही मंहगाई।

जो कछु हमरी सुनइ हुकूमत तौ हम बिनय सुनाई
सबकी खेती नीकि हमइं जंगलइ देत जुतवाई।
चउगिरदा सब राहइं रूँधी, भागि कहाँ का जाई
कइसे प्राण बचइं बिन खाए खाना कहाँ ते लाई।
हमका चूसि रही मंहगाई।

सुनित रहइ जिमिदार न रहिहइं तब जमीन मिलि जाई
अब उनके दादा बनि बइठे सभापती दुखदाई।
खुद सब जोतइं धरती बेंचइं महल रहे उठवाई
हम भुइंहीन सदा से, खेती हमइ न कोउ दइ पाई।
हमका चूसि रही मंहगाई।

हमते कहइं की की भुइं पर कब्जा लेहु जमाई
फिरी थोरे दिन माँ पटवारी अधिवासी लिखि जाई।
जिनकी भुइं नीके कस छोड़िहइं कबजा जउ करि पाई
उनके लरिका हमका कोसिहइं हम बेइमान कहाई।
हमका चूसि रही मंहगाई।

हम होई बीमार डरन माँ अस्पताल ना जाई
हुंवउ लगि रही संतति निग्रह इंद्री लेइ कटाई।
सुवरी कसि छाबरि अफसर की बंसु बढ़इ अधिकाई
हमरे तीनि जनेन का देखे उनकी फटइं बेवाई।
हमका चूसि रही मंहगाई।

नफाखोर मेढुका अस फूलइं हमरा सबु डकराई
थानेदार जवानी देखे पिस्टल देंइ धराई।
जो जेत्ता मेहनती वहे के घर वत्ती कंगलाई
जो जेत्ता बेइमान वत्तिहे तोंदन पर चिकनाई।
हमका चूसि रही मंहगाई।

पार्टीबिंदी न्याय नीति अउ राजनीति ठगहाई
कोऊ नहीं सुनइ कोऊ की मउत रही डिड़ियाई।
हे ईसुर यहु सिस्टम बदलउ देउ सयान बनाई
चाटि जाउ सरकारु आजु की या चाटउ लिडराई।
हमका चूसि रही मंहगाई।