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मगही काका के कुंडलिया / शिव प्रसाद लोहानी

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जोकर ओकर नई रहल जोकर बनल महान,
जोकर के ही वजह से बढ़ल देश के मान
बढ़ल देश के मान सभे चमचा हथ लोफर
आटा खुद खा जाय देय जनता के चोकर
मगही काका बनल हका जोकर के सोफर
निकले जन के बोल, धन्य जय-जय-जय जोकर।

घूम रहल आकास में सधन बदरिया कार
जल्दी ही अब धरा पर, बहत नीर के धार,
बहत नीर के धार, बेंग ढौंस भी बोलत,
मगही काका खुशी में लेता पत्ता चूम,
मन भी हरियर होत जब लेतन खेतन घूम।

दाग चाँद के गोद में बइठल करे किलोल,
राजनीति के खेल में दागे कइलक गोल,
दागे कइलक गोल, गोल पर गोल बनइलक
बेटा-बेटी भाय सभे ला महल बनइलक
मगही काका लगी हे दाग भयंकर नाग
कुर्सी पर जम गेल हे ई बिसखोपड़ा दाग।

माया से माया मिलल ओकर जयजयकार
मायावी नर के अभी सभे करे सतकार,
सभे करे सतकार सगर माया के माया
चारो खम्भन के एही हे अखनी पाया
मगही काका के सचमुच है अइसन काया
इनखा से अब भिड़थ न डर से कोई माया।