भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मधुकर नहीं मन / राहुल शिवाय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुनः जन्म लेकर आऊँगा।

मैंने तुममे चाह जगाई,
प्रेमिल पथ की राह दिखाई,
पर इसपर अधिकार जो तेरा-
प्राण ! तुमको न दे पाऊँगा।
पुनः जन्म लेकर आऊँगा।।

कोसों दूर रहो तुम मुझसे,
न जाओगी फिर भी हृदय से,
मैंने बस तुमको चाहा है-
जीवन भर तुमको चाहूँगा।
पुनः जन्म लेकर आऊँगा।।

अपना-अपना नियम यहाँ है,
पाषाणों मेँ हृदय कहाँ है,
यदि मेरे वश मेँ हो जाए-
मानव जन्म न दुहराऊँगा।
पुनः जन्म लेकर आऊँगा।।