भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी  
 
|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी  
|संग्रह=  
+
|संग्रह=हिम तरंगिनी / माखनलाल चतुर्वेदी
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!
 
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!

01:53, 6 अक्टूबर 2009 का अवतरण

मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!
प्रलय-प्रणय की मधु-सीमा में
जी का विश्व बसा दो मालिक!

रागें हैं लाचारी मेरी,
तानें बान तुम्हारी मेरी,
इन रंगीन मृतक खंडों पर,
अमृत-रस ढुलका दो मालिक!
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!

जब मेरा अलगोजा बोले,
बल का मणिधर, स्र्ख रख डोले,
खोले श्याम-कुण्डली विष को
पथ-भूलना सिखा दो मालिक!
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!

प्रहर-प्रहर की लहर-लहर पर
तुम लालिमा जगा दो मालिक!
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!