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"मना लूँ मन को तो सजनी / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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विन्ध्यावाली—
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विन्ध्याचली—
मना लूँ मन को तो सजनी
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मना लूँ मन को तो, सजनी!
 
जीवनधन के बिना कटे क्योंकर पावस की रजनी!
 
जीवनधन के बिना कटे क्योंकर पावस की रजनी!
 
तप करने निकले मनमोहन, वन के भाग्य जगे री
 
तप करने निकले मनमोहन, वन के भाग्य जगे री
सूनी सेज पड़ी ऐसे नंदन में आग लगे री
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सूनी सेज पड़ी, ऐसे नंदन में आग लगे री
 
सजनी तुझको रामदुहाई, उनसे कह दे जाकर
 
सजनी तुझको रामदुहाई, उनसे कह दे जाकर
 
धूनी बनी विरहिनी जल-जल, से लें घर ही आकर  
 
धूनी बनी विरहिनी जल-जल, से लें घर ही आकर  

02:43, 21 जुलाई 2011 का अवतरण


विन्ध्याचली—
मना लूँ मन को तो, सजनी!
जीवनधन के बिना कटे क्योंकर पावस की रजनी!
तप करने निकले मनमोहन, वन के भाग्य जगे री
सूनी सेज पड़ी, ऐसे नंदन में आग लगे री
सजनी तुझको रामदुहाई, उनसे कह दे जाकर
धूनी बनी विरहिनी जल-जल, से लें घर ही आकर
योगीश्वर कहलाते शंकर उमा-अधर-रस-भोगी
जो वियोग की पीर समझते वे हैं सच्चे योगी