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मनुस्मृति से जलन (कव्वाली) / अछूतानन्दजी 'हरिहर'

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निश दिन मनुस्मृति ये हमको जला रही है।
ऊपर न उठने देती, नीचे गिरा रही है॥
ब्राह्मण व क्षत्रियों को सबका बनाया अफसर।
हमको "पुराने उतरन पहनो" बता रही है॥
दौलत कभी न जोड़े, गर हो तो छीन लें वह।
फिर 'नीच' कह हमारा, दिल भी दुखा रही है॥
कुत्ते व बिल्ली मक्खी, से भी बना के नीचा।
हा शोक! ग्राम बाहर, हमको बसा रही है॥
हमको बिना मजूरी, बैलों के साथ जातें।
गाली व मार उस पर, हमको दिला रही है॥
लेते बेगार, खाना तक पेट भर न देते।
बच्चे तड़पते भूखों, क्या जुल्म ढा रही है॥
ऐ हिन्दू कौम! सुन ले, तेरा भला न होगा।
हम बेकसों को 'हरिहर' गर तू रुला रही है॥