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"मन किसी का क्या पता कितना है गहरा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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मन किसी का क्या पता कितना है गहरा।
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मन किसी का क्या पता कितना है गहरा
 
आइने के  सामने  चेहरा क्यों उतरा।
 
आइने के  सामने  चेहरा क्यों उतरा।
  
देखते ही देखते ये क्या हुआ है,
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देखते ही देखते ये क्या हुआ है
 
मेरी उल्फ़त का कभी था रँग सुनहरा।
 
मेरी उल्फ़त का कभी था रँग सुनहरा।
  
इश्क को अंजाम तक आते है देखा,
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इश्क को अंजाम तक आते है देखा
 
चार दिन में ही नशा उसका है उतरा।
 
चार दिन में ही नशा उसका है उतरा।
  
ऐ ख़ुदा इतनी ही मेरी आरजू है,
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ऐ ख़ुदा इतनी ही मेरी आरजू है
 
हसरतों पे हो किसी का भी न पहरा।
 
हसरतों पे हो किसी का भी न पहरा।
  
अब  किसे आवाज़ देकर हम जगायें,
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अब  किसे आवाज़ देकर हम जगायें
 
अब तो यह सारा जहां लगता है बहरा।  
 
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16:28, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

मन किसी का क्या पता कितना है गहरा
आइने के सामने चेहरा क्यों उतरा।

देखते ही देखते ये क्या हुआ है
मेरी उल्फ़त का कभी था रँग सुनहरा।

इश्क को अंजाम तक आते है देखा
चार दिन में ही नशा उसका है उतरा।

ऐ ख़ुदा इतनी ही मेरी आरजू है
हसरतों पे हो किसी का भी न पहरा।

अब किसे आवाज़ देकर हम जगायें
अब तो यह सारा जहां लगता है बहरा।