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"मन के झरोखे से "मन" / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर

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मन के कारण जनम मरण है, मन राजा मन रंक,
 
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मन चंगा  शिवदीन लख  पल में  बने  निशंक।
 
मन चंगा  शिवदीन लख  पल में  बने  निशंक।
पल में बने निशंक  संतक का  सेवक  सच्चा,
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पल में बने निशंक  संत का  सेवक  सच्चा,
 
वही  नर तन  है  धन्य  और  अच्छा ये अच्छा।
 
वही  नर तन  है  धन्य  और  अच्छा ये अच्छा।
 
भव  बन्धन  बेडी  कटे  कटे  पाप  घनघोर,
 
भव  बन्धन  बेडी  कटे  कटे  पाप  घनघोर,
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मन मूरख माने नहीं,  तब तक  मिटे न खेद,
 
मन मूरख माने नहीं,  तब तक  मिटे न खेद,
 
पढ़ि पुराण भरमा गये, केते  पढ़ि-पढ़ि  वेद।
 
पढ़ि पुराण भरमा गये, केते  पढ़ि-पढ़ि  वेद।
केते पढ़ि-पढ़ि  वेद,  गुीा ज्ञानी जन डूबे,  
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केते पढ़ि-पढ़ि  वेद,  गुणी ज्ञानी जन डूबे,  
 
चातुर  डूब्या  जाय,  घणे  अभिमानी  डूबे।
 
चातुर  डूब्या  जाय,  घणे  अभिमानी  डूबे।
 
संत शरण  बिन ना बने,  रीझें ना वह  राम,
 
संत शरण  बिन ना बने,  रीझें ना वह  राम,

18:35, 18 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

मंत्र मिला ना एक यंत्र भी ध्वस्त हो गया,
तंत्र चले ना यार देख बल होश खोगया।
करवाये अभिषेक देवता सब ही पूजे,
झाड़ -फूकियां थके चाल कोई ना सूझे,।
शूरवीर जोधा थके किस पर करे यकीन,
मन मतंग माने नहीं क्या उपाय शिवदीन।
                   राम गुण गायरे।।

मन कारण बन में गये तज करके घर द्वार,
जोगी जंगल में रहे हुए न भव से पार।
हुए न भव से पार चतुर चालाक गुनी जन,
राजा रंक फकीर सभी के साथ रहे मन।
शिवदीन संत कोउ बस करे यो मन है गजराज,
मन भागे आगे बहुत के बस है महाराज।
                      राम गुण गाय रे।।

मन के कारण जनम मरण है, मन राजा मन रंक,
मन चंगा शिवदीन लख पल में बने निशंक।
पल में बने निशंक संत का सेवक सच्चा,
वही नर तन है धन्य और अच्छा ये अच्छा।
भव बन्धन बेडी कटे कटे पाप घनघोर,
ब्रह्म राम मिल जाय रे प्यारा नन्द किशोर।
                          राम गुण गायरे।।

मन से है लाभ हानि, यो भ्रम दूर निवारो,
जनम मरण मन मुक्त, मुक्ति न्यारी ना यारो।
ज्ञान भक्ति अनुराग, सत्य वैराग्य जगावे,
मन है मन में, जानि-जानि, मन हरि गुण गावे।
शिवदीन बिना मन क्या बने, है बिगार नहीं और,
अपना मन ही बन रहा, शंहशाह अरू चोर।
                       राम गुण गायरे।।

सब झगरा है मन ही का, मन से करो विचार,
जहां लगाया मन लगा, प्रेम प्यार से यार।
प्रेम प्यार से यार और कोई सार नहीं है
मन है अपना यार, अन्य दिलदार नहीं है।
शिवदीन मन ही तो जाळ है और नहीं कोई जाल,
राम नाम में मन लगा, बाकी सब जंजाळ।
                          राम गुण गायरे।।

माने ना मन है बली ज्ञान ध्यान की आन,
पद्मासन आसन लगा कर बैठे अभिमान।
कर बैठे अभिमान उन्हे मन पटक पछारे,
देखो बात विचार यार सब ही जन हारे।
शिवदीन सत्य शरणागति संतन केरा संग,
मन मतंग थिर हो वहीं पावे भक्ति रंग।
                 राम गुण गायरे।।

मन कपूत मन उत है, मन ही भूत बेताल,
मन के कारण दुःख भरम मन ही है खुशहाल।
मन ही है खुशहाल, सुख सब संग है मन के,
सुख-दुःख स्वप्न समान, संत सायक* जिस मन के। *सहायक
शिवदीन संत की शरण में, रूक जाये मन चोर,
मन बस करने का नहीं, मंत्र दूसरा और।
                           राम गुण गायरे।।
            
मन मूरख माने नहीं, तब तक मिटे न खेद,
पढ़ि पुराण भरमा गये, केते पढ़ि-पढ़ि वेद।
केते पढ़ि-पढ़ि वेद, गुणी ज्ञानी जन डूबे,
चातुर डूब्या जाय, घणे अभिमानी डूबे।
संत शरण बिन ना बने, रीझें ना वह राम,
शिवदीन मनोरथ पूर्ण हो मन के घले लगाम।
                     राम गुण गायरे।।

मन हाथी बंधता नहीं, पचि हारे गुणवान,
कोई जादू ना चले, बांधे क्या नादान।
बांधे क्या नादान, तपस्वी केते हारे,
युक्ति बिन कई मरे, सूरमा बात विचारे।
धन्य-धन्य हे संत जन, बारंबार प्रणाम,
शिवदीन बंधे गजराज मन सधि हैं आठो याम।
                      राम गुण गायरे।।

मन रूक जाये, रोक दे, साधु सूर सुजान,
बाकी सब पचि-पचि मरे, जोधा जोर अज्ञान।
जोधा जोर अज्ञान, रोकि मन को सब हारे,
सज्जन सतसंग संत, भक्त को राम उबारे।
ना कोई मन हलचल करे, लखि बात शिवदीन,
राम नाम सतनाम से, मिटे ताप अघ तीन।
                      राम गुण गायरे।।