भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन कै अँधेरिया / हरिश्चंद्र पांडेय 'सरल'

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:15, 27 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिश्चंद्र पांडेय 'सरल' |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन कै अँधेरिया अँजोरिया से पूछै,

टुटही झोपड़िया महलिया से पूछै,

बदरी मा बिजुरी चमकिहैं कि नाँहीं,

का मोरे दिनवाँ बहुरिहैं कि नाँहीं।

   माटी हमारि है हमरै पसीना,

   कोइला निकारी चाहे काढ़ी नगीना,

   धरती कै धूरि अकास से पूछै,

   खर पतवार बतास से पूछै,

   धरती पै चन्दा उतरिहैं कि नाँहीं।

… … का मोरे दिनवाँ बहुरिहैं कि नाँहीं।

   दुख औ दरदिया हमार है थाती,

   देहियाँ मा खून औ मासु न बाकी,

   दीन औ हीन कुरान से पूछै,

   गिरजाघर भगवान से पूछै,

   हमरौ बिहान सुधरिहैं कि नाँहीं।

… … का मोरे दिनवाँ बहुरिहैं कि नाँहीं।

   नाँहीं मुसलमा न हिन्दू इसाई,

   दुखियै हमार बिरादर औ भाई,

   कथरी अँटरिया के साज से पूछै,

   बकरी समजवा मा बाघ से पूछै,

   एक घाटे पनिया का जुरिहैं कि नाँहीं।

… … का मोरे दिनवाँ बहुरिहैं कि नाँहीं।

   आँखी के आगे से भरी भरी बोरी,

   मोरे खरिहनवा का लीलय तिजोरी,

   दियना कै जोति तुफान से पूछै,

   आज समय ईमान से पूछै,

   आँखी से अँधरे निहरिहैं कि नाँहीं।

… … का मोरे दिनवाँ बहुरिहैं कि नाँहीं।