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मन न मिला तो कैसा नाता / कृष्ण मुरारी पहारिया
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मन न मिले तो कैसा नाता
भला अकेला ठोकर खाता
जितने थे, झूठे वादे थे
सुख पर सभी बिके प्यादे थे
जाने क्यों मैं समझ न पाया
जग के नियम बड़े सादे थे
अपना ही स्वर मैं दुहराता
भला अकेला ठोकर खाता
फिर तो जो बाधाएँ आईं
बढ़कर मैंने गले लगाईं
उतना ही मैं कुशल हो गया
जितनी असफलताएँ पाईं
अपने घाव स्वयं सहलाता
भला अकेला ठोकर खाता
12.08.1963