भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ममता मेरी, मुझको / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 11 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ममता मेरी, मुझको लाचार न कर!

आँधी के कंधों पर ही चलने दे,
ऊष्म की आहों पर ही पलने दे;
हरियाली का मुझसे अब हाल न कह
बगिया फल आई है तो फलने दे!
ठंढक देकर मुझको हिमहार न कर!

टकराता हूँ जलती चट्‍टानों से,
ऊपर ही उठता हूँ तूफानों से;
बड़वा-दावा की भी परवाह नहीं,
बस, दिल घबराता है हिमवानों से!
हिम-आसन से मेरा सत्कार न कर!