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"महकता मरूआ / सतीश छींपा" के अवतरणों में अंतर

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04:51, 14 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

जब हम मिले थे
पीपल पर पक रही थी
भरभटी
यौवन पर था
बोगनबेलीया
मरूआ महक रहा था
चमक रहा था चेहरा चम्पा का
अब-
पीपल से पत्ते झरने लगे है
नंगी है शाखें शहतूत की
गूलमोहर-
उदास खड़ा है
नीम पर भी तारी है
पीलापन
और हम-
एक दूजे से दूर है।