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महमूद दरवेश / परिचय

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महमूद दरवेश - परिचय

हिंदी में


फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधी साहित्य के इस सबसे बड़े कवि का जन्म 1941 में हुआ.

महमूद दरवेश बचपन से ही फ़िलिस्तीनियों पर इज़रायली अत्याचारों के मुखर विरोधी रहे.

1970 में इन्हें विश्व प्रसिद्ध 'लोटस' पुरस्कार और 1983 में 'लेनिन शान्ति पुरस्कार' मिला.

सैकड़ों विदेशी भाषाओं में इनकी कविताओं के अनुवाद हो चुके हैं। 12अगस्त 2008 को अमरीका में हृदय-सर्जरी के दौरान देहान्त।

अरब जगत ने खोया प्रखर एवं सजग कवि

रामल्लाह। फलस्तीनियों की दुख: और पीडा तथा उनके संघर्ष को अपनी कविताओं के जरिए आवाज देने वाले मशहूर कवि महमूद दरवेश को बुधवार को यहां हजारों लोगों ने नम आंखों से अंतिम विदाई दी।

पश्चिमी तट के रामल्लाह शहर में दसियों हजार फलस्तीनियों ने ..ओ महमूद ओ महमूद तुम चैन से सो जाओ हम अपना संघर्ष जारी रखेंगे नारों के बीच पूरे राजकीय सम्मान के साथ दरवेश को सुपुर्देखाक किया गया। उनका पार्थिव शरीर फलस्तीनी झंडे में लिपटा हुआ था जिस पर उनकी कविताएं लिखी हुई थी।

67 वर्षीय दरवेश का गत शनिवार को अमेरिका के ह्यूस्टन अस्पताल में ओपन हार्ट सर्जरी के बाद निधन हो गया था। उनके पार्थिव शरीर को पहले अमेरिका से पहले जार्डन लाया गया और फिर बाद में वहां से विमान के जरिए रामल्लाह पहुंचाया गया। इस मौके पर लोगों ने कहा कि दरवेश में लफ्जों और बुद्धिमत्ता का गजब का हुनर था। वे हमारे देश की जनभावना, मानवीयता और हमारे स्वतंत्रता संघर्ष का प्रतीक थे।

यह दरवेश ही थे जिन्होंने 1988 में फलस्तीनी मुक्ति संगठन द्वारा अंगीकृत की गई स्वतंत्रता के घोषणापत्र को अपनी कलम से संवारा था। दरवेश उन अरब लोगों में से थे जिन्हें 1948 में इजरायल के गठन के साथ ही विस्थापन का दंश झेलना पडा था। उन दिनों वह एक मासूम बच्चे थे, लेकिन इस दंश ने उन्हें कहीं अंदर तक गहरा प्रभावित किया। अपनी मुखर कविताओं के कारण कई बार जेल गए दरवेश वर्ष 1971 में उच्च शिक्षा के लिए सोवियत संघ रवाना हुए। इसके बाद उनका जीवन भी संघर्षोसे ही भरा रहा। काहिरा, बेरूत और पेरिस में कई दिनों तक निर्वासित जीवन व्यतीत किया।

वे फलस्तीन मुक्ति संगठन की कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे, लेकिन 1993 में इजरायल और फलस्तीन के बीच हुए ओस्लो समझौते के विरोध में उन्होंने संगठन के नेता यासिर अराफात से अपना नाता तोड लिया और पद से इस्तीफा दे दिया। गौरतलब है कि पिछले महीने उन्होंने संवाददाताओं से मुलाकात में कहा था कि मेरी नई कविता हास्य और व्यंग से भरपूर है जिसमें आप फलस्तीनियों के साथ-साथ इजरायलियों की भावनाओं को भी पढ पाएंगे। क्योंकि मेरा मानना है कि व्यंग एक ऐसी दवा है जो हमें घावों की पीडा और दुख: और दर्द को भुलाकर हंसने का मौका देती है।

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नेपालीमा

महमुद दरविसको जन्म १३ मार्च सन्‌ १९४१ मा प्यालेस्टाइनको अल बिर्वामा एक जमिनदार सुन्नी मुसलमान परिवारमा भएको थियो। इज्राइल राज्यको रूपमा स्थापित हुने क्रममा सन्‌ १९४८ मा उनको गाउँ तहसनहस भयो र उनीहरू लेबनान पलायन भए।अर्को वर्ष उनीहरू लुकेर इज्राइल छिरे र गाउँ फर्किए।

राजनैतिक कृयाकलापमा संलग्न भएको र सार्वजनिकरूपमा कविता सुनाउँदै हिँडेको आरोपमा युवा अवस्थामा दरविसलाई अनेकौँपल्ट नजरबन्द तथा थुनामा राखियो।उनी सन्‌ १९६० मा औपचारिक रूपमा इज्राइलको कम्युनिस्ट पार्टीमा प्रवेश गरे।सन्‌ १९७० मा उनी रुस गएर एक वर्ष मास्को विश्वविद्यालयमा अध्ययन गरी कायरो गए। उनी २६ वर्षसम्म निर्वासित भएर बेरुत र पेरिसमा बसे र सन्‌ १९९६ मा इज्राइल फर्किए।त्यसपछि उनी रामाल्लाहमा बसे।

प्यालेस्टाइनका सर्वाधिक प्रखर कविका रूपमा चिनिएका दरविसले बाईस वर्षको उमेरमा आफ्नो पहिलो कवितासङ्ग्रह 'असाफिर बिला अज्निहा' (पङ्खरहित पक्षी) प्रकाशित गराएका थिए।त्यसपश्चात् उनले तीस वटा कवितासङग्रह तथा अन्य आठ वटा पुस्तक प्रकाशित गराए।उनका रचनाहरू विश्वका दुई दर्जन भाषाहरूमा अनुदित छन्‌।

दरविसले दुईवटा विवाह गरे तर दुबै विवाह विच्छेद भए।उनको पहिलो विवाह लेखिका राना कब्बानीसँग भएको थियो भने दोस्रो विवाह मिस्रकी अनुवादक हयात हीनीसँग भएको थियो।

प्यालेस्टाइनका सर्वाधिक लोकप्रिय कवि महमुद दरविसको मुटुको शल्यक्रियाको तीन दिनपछि ९ अगस्ट सन्‌ २००८ मा संयुक्त राज्य अमेरिकाको हस्टनमा निधन भयो।

दरविसले आफ्नो इच्छापत्रमा जनाए अनुसार उनको शवलाई प्यालेस्टाइन लगेर अन्तिम संस्कार गरियो।उनको मृत्युमा प्यालेस्टाइन सरकारले तीन दिनको राष्ट्रिय शोक घोषणा गर्‍यो।भनिन्छ, महमुद दरविसको अन्तिम संस्कारमा सम्पूर्ण प्यालेस्टाइन उर्लिएर आएझैँ देखिन्थ्यो र उनका मलामीहरूको सङ्ख्या नेता यासिर अराफातका मलामी जति नै थियो।