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[[Category: सेदोका]]
<poem>
नत है शीश
करता हूँ वंदन
करूँ हित चिंतन
साँसों में बसाकर।
रंग या रूप
यौवन की ये धूप
न आयु -लिंग भेद
गङ्गा नहाके आए।
कुछ न करो
कभी पल दो पल
मिलन का प्रभात
सुख के दिन-रात।
लौटना कभी
किस गाँव की गली
मेरा न कोई गाँव
घर-द्वार भी नहीं।
उजाड़ वन
हमने बसाए थे,