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"माँगना / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

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उतना ही तुम मनुष्य बन सकोगे
 
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किताबों ने कहा हमें पढ़ो
 
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ताकि तुम्हारे भीतर ची़जों को बदलने की बेचैनी पैदा हो सके
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कुछ अजीबो़गरीब है जीवन का हाल
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वह अब भी जगह-जगह भटकता है और दस्तक देता है
 
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माँगता रहता है अपने लिए  
 
माँगता रहता है अपने लिए  

14:36, 20 जून 2020 के समय का अवतरण

जब भी खुद पर निगाह डालता हूँ
पलक झपकते ही माँ स्मृति में लौट आती है
मैं याद करता हूँ कि उसने मुझे जन्म दिया था
कभी-कभी लगता है वह मुझे लगातार जनमती रही
पिता ने मुझ पर पैसे लुटाये और कहा
शहरों में भटकते हुए तुम कहीं घर की सुध लेना भूल न जाओ
दादा ने पिता को नसीहत दी
जैसा हुनरमंद मैंने तुम्हें बनाया उसी तरह अपने बेटे को भी बनाओ

दोस्तों ने मेरी पीठ थपथपायी
मुझे उधार दिया और कहा उधार प्रेम की कैंची नहीं हुआ करती
जिससे मैंने प्रेम किया
उसने कहा मेरी छाया में तुम जितनी देर रह पाओ
उतना ही तुम मनुष्य बन सकोगे
किताबों ने कहा हमें पढ़ो
ताकि तुम्हारे भीतर चीज़ों को बदलने की बेचैनी पैदा हो सके

कुछ अजीबोग़रीब है जीवन का हाल
वह अब भी जगह-जगह भटकता है और दस्तक देता है
माँगता रहता है अपने लिए
कभी जन्म कभी पैसे कभी हुनर कभी उधार
कभी प्रेम कभी बेचैनी।