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{{KKAnthologyMaa}}
<poem>मेरा बच्चा,
जब हँसता,
रोता,
महसूस होता है
तुम मुझ में खड़ी--
मुझी को निहारती हो.....माँ! तुम याद बहुत आती हो......
पता है माँ,
जो तुम
मुझे कहा करती थी--
मेरे होंठों से लोरी भी तुम्हीं सुनाती हो....माँ ! तुम याद बहुत आती हो.....
सुना तुमने,
माँ की महिमा
और भी बढ़ जाती है--
पल- पल इसका आभास कराती हो.....माँ! तुम याद बहुत आती हो......
हर माँ,
किस्सा सब पुराना है
सदियों से चला आ रहा फसाना है--
इस बात को ढंग से समझाती हो......माँ! तुम याद बहुत आती हो......
क्षण -क्षण,
बच्चे में ख़ुद को
ख़ुद में तुम को पाती हूँ,
जिंदगी ज़िन्दगी का अर्थ,
अर्थ से विस्तार,
विस्तार से अनन्त का
सुख पाती हूँ--
मेरे अन्तस में दर्प के फूल खिलाती हो...
माँ! तुम याद बहुत आती हो......
</poem>
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