भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मानव कवि बन जाता है / गोपालदास "नीरज"

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 13 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" }} तब मानव कवि बन जाता है !<br> जब उसको संसा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तब मानव कवि बन जाता है !
जब उसको संसार रुलाता,
वह अपनों के समीप जाता,
पर जब वे भी ठुकरा देते
वह निज मन के सम्मुख आता,
पर उसकी दुर्बलता पर जब मन भी उसका मुस्काता है !
तब मानव कवि बन जाता है !