भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मान रे ! मान मान, मन मान / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | {{ | + | {{KKRachna |
|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी | |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी | ||
− | + | | | |
+ | | | ||
+ | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 17: | ||
शिवदीन सतगुरू प्यार देरहे, सब सारन का सार देरहे, | शिवदीन सतगुरू प्यार देरहे, सब सारन का सार देरहे, | ||
काया माया छलकर सबका, हर लेती है प्रान। | काया माया छलकर सबका, हर लेती है प्रान। | ||
− | <poem> | + | </poem> |
11:23, 30 मई 2012 के समय का अवतरण
मान रे! मान मान, मन मान।
कैसे भी तो मान मनन कर, धर मन उर में ध्यान।
क्या आनंद दुनियां में हेरे, राम नाम ले सांझ सवेरे,
परमानंद हृदय में खोजो, हैं अन्दर भगवान । (घट-घट में भगवान)
एक बार सौ बार हेरकर, खोज हृदय में नहीं देर कर,
मिल जायेंगे ब्रह्म राम हैं, सत्य करो पहचान।
लगा प्रीत कबहूं ना छूटे, राम नाम रस क्यूं ना लूटे,
जनम जनम आनंद मिलेगा, करो राम गुण गान।
शिवदीन सतगुरू प्यार देरहे, सब सारन का सार देरहे,
काया माया छलकर सबका, हर लेती है प्रान।