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"मारा गया इंसाफ़ माँगने के जुर्म में / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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मेरा गुनाह ये है कि मैं बेगुनाह हूं
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पकड़ा गया  चोरों को पकड़ने के जुर्म में
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पहले तो पर कतर के कर दिया लहूलुहान
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फिर सिल दिया ज़बान चीखने के जुर्म में
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पंडित ने अपशकुन बता दिया था, इसलिए
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हैं लोग ख़फ़ा मुझसे छींकने के जुर्म में
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औरों की खुशी देख क्यों पाती नहीं दुनिया
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तोड़े गये हैं फूल महकने के जुर्म में
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उट्ठे नहीं क्यों हाथ गिरेबान की तरफ़
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खायी है लात पांव पकड़ने के जुर्म में
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कब तक रहूं मैं चुप कोई मुझको तो बताए
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बढ़ती गयी सज़ा मेरी सहने के जुर्म में
 
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20:43, 18 मई 2021 के समय का अवतरण

मारा गया इंसाफ़ मांगने के जुर्म में
इंसानियत के हक़ में बोलने के जुर्म में

मेरा गुनाह ये है कि मैं बेगुनाह हूं
पकड़ा गया चोरों को पकड़ने के जुर्म में

पहले तो पर कतर के कर दिया लहूलुहान
फिर सिल दिया ज़बान चीखने के जुर्म में

पंडित ने अपशकुन बता दिया था, इसलिए
हैं लोग ख़फ़ा मुझसे छींकने के जुर्म में

औरों की खुशी देख क्यों पाती नहीं दुनिया
तोड़े गये हैं फूल महकने के जुर्म में

उट्ठे नहीं क्यों हाथ गिरेबान की तरफ़
खायी है लात पांव पकड़ने के जुर्म में

कब तक रहूं मैं चुप कोई मुझको तो बताए
बढ़ती गयी सज़ा मेरी सहने के जुर्म में