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"माली कैसे सह पाता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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तू ही सब कलियों का काल
  
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पत्थर की मूरत की खातिर
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कली बिचारी जाँ से जाती
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डाली रोती फूट-फूटकर
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फिर भी दया न तुझको आती
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इतने दुख देकर बगिया को
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होता तुझको नहीं मलाल
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कितना कोमल कली-हृदय है
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तूने कभी नहीं सोचा
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कितनी कलिकाओं को तूने
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भरी जवानी में नोंचा
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ना देखी पौधों की तड़पन
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ना देखा भँवरों का हाल
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कैसे तू निश्चित करता है
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कौन कली खिलने देनी है
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तोड़ किसे प्रातः ही तुझको
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गूँथ नई माला लेनी है
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कहीं नियम कुछ बना रखे या
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सब तेरे पाँसों का जाल
 
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10:06, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

माली कैसे सह पाता है
अपने धन्धे का जंजाल
तू ही हर बगिया का पालक
तू ही सब कलियों का काल

पत्थर की मूरत की खातिर
कली बिचारी जाँ से जाती
डाली रोती फूट-फूटकर
फिर भी दया न तुझको आती

इतने दुख देकर बगिया को
होता तुझको नहीं मलाल

कितना कोमल कली-हृदय है
तूने कभी नहीं सोचा
कितनी कलिकाओं को तूने
भरी जवानी में नोंचा

ना देखी पौधों की तड़पन
ना देखा भँवरों का हाल

कैसे तू निश्चित करता है
कौन कली खिलने देनी है
तोड़ किसे प्रातः ही तुझको
गूँथ नई माला लेनी है

कहीं नियम कुछ बना रखे या
सब तेरे पाँसों का जाल