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"माहिए (1 से 10) / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर

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1.  क़ुदरत के नज़ारे हम
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      भूल नहीं सकते
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      जो दूर करें हर ग़म
  
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2.  ‘माही’ ने दिखाया था
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      खेल निराला वो
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    ‘चौका’  जो लगाया था
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3.  घनश्याम घर आयेंगे
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      रूठ गये हम तो
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      वो हम को मनाएंगे
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4.  ‘होली’ की ये रौनक़ भी
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      सब से निराली है
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      गुजियों से भरी थाली
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5.  नदिया का किनारा है
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      पार उतरने को
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      अब उसका सहारा है
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6.  चिड़ियों के नशेमन में
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      ‘सोने’ से वो बच्चे
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      चहकेंगे खुलेपन में
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7.  वो नीर भरी बदली
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      झुक के बरसती जो
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      लगती है मुझे पगली
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8.  छड़ियों के वो मेले में
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      आज मिला मुझको
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      नाकाम अकेले में
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9.  इस पर भी नज़र डालें
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      स्वर्ण हुआ सस्ता
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      मँहगी हैं मगर दालें
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10. इस गाँव से छोरी का
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      रिश्ता पुराना है
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      ज्यूँ चाँद- चकोरी का
 
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23:25, 24 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

1. क़ुदरत के नज़ारे हम
      भूल नहीं सकते
      जो दूर करें हर ग़म

2. ‘माही’ ने दिखाया था
      खेल निराला वो
     ‘चौका’ जो लगाया था

3. घनश्याम घर आयेंगे
      रूठ गये हम तो
      वो हम को मनाएंगे

4. ‘होली’ की ये रौनक़ भी
      सब से निराली है
      गुजियों से भरी थाली

5. नदिया का किनारा है
      पार उतरने को
      अब उसका सहारा है

6. चिड़ियों के नशेमन में
      ‘सोने’ से वो बच्चे
      चहकेंगे खुलेपन में

7. वो नीर भरी बदली
      झुक के बरसती जो
      लगती है मुझे पगली

8. छड़ियों के वो मेले में
      आज मिला मुझको
      नाकाम अकेले में

9. इस पर भी नज़र डालें
      स्वर्ण हुआ सस्ता
      मँहगी हैं मगर दालें

10. इस गाँव से छोरी का
      रिश्ता पुराना है
      ज्यूँ चाँद- चकोरी का