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"मिट्टी छोड़ चरण तू मेरे / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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मिट्टी छोड़ चरण तू मेरे
 
मैं विमुक्त, क्यों मुझको तेरा जड़ आलिंगन घेरे!
 
 
 
निशि-दिन का यह चक्र निरर्थक संध्या और सवेरे
 
मैं तो देश-काल से ऊपर, फिरूँ न इनके फेरे
 
कंचन-किंचन हारे, बस कर काम-कीर्ति-शर तेरे
 
लक्ष्य दूर चल पड़ा बटोही उठकर बड़े अँधेरे
 
 
 
मिट्टी छोड़ चरण तू मेरे
 
मैं विमुक्त, क्यों मुझको तेरा जड़ आलिंगन घेरे!
 
<poem>
 

02:46, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण