भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिलना न अब हमारा हो भी अगर तो क्या है! / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:29, 22 सितम्बर 2009 का अवतरण ()

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मिलना न अब हमारा हो भी अगर तो क्या है!
यह प्यार बेसहारा हो भी अगर तो क्या है!

जब नाव लेके निकले, तूफ़ान का डर कैसा!
कुछ और तेज धारा हो भी अगर तो क्या है!

हम जिनके लिये जूझे लहरों से, नहीं वे ही
नज़रों में अब किनारा हो भी अगर तो क्या है!

बेआस चलते-चलते, राही तो थकके सोया
मंज़िल का अब इशारा हो भी अगर तो क्या है!

दिल में तो हमेशा तू रहता है, गुलाब! उसके
घर छोड़के आवारा हो भी अगर तो क्या है!