भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुँह खोलके हमसे जो मिलते न बना होता / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडे…)
 
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
  
 
जो पूछ भी लेते तुम उड़ती हुई नज़रों से  
 
जो पूछ भी लेते तुम उड़ती हुई नज़रों से  
क्यों रूठ के यों कोई दुनिया से गया होता
+
क्यों रूठके यों कोई दुनिया से गया होता
  
इन शोख़ अदाओं का सब खेल हमीं से है
+
इन शोख़ अदाओं का सब खेल हमींसे है
 
होते न अगर हम तो क्या इनका हुआ होता!
 
होते न अगर हम तो क्या इनका हुआ होता!
  

01:06, 9 जुलाई 2011 का अवतरण


मुँह खोलके हमसे जो मिलते न बना होता
कुछ तुमने निगाहों से कह भी तो दिया होता

कोई न अगर दिल के परदे में छिपा होता
यों किसने ख़यालों को रंगीन किया होता

क्या हमसे छिपी रहती जो बात थी उस दिल में
परदा तो मगर अपनी आँखों से हटा होता!

राहें थी अलग तो क्या, हम मिल भी कभी जाते!
कुछ तुमने कहा होता, कुछ हमने कहा होता!

जो पूछ भी लेते तुम उड़ती हुई नज़रों से
क्यों रूठके यों कोई दुनिया से गया होता

इन शोख़ अदाओं का सब खेल हमींसे है
होते न अगर हम तो क्या इनका हुआ होता!

वैसे तो 'गुलाब' उनका इस बाग़ पे कब्ज़ा है
हम देखते ख़ुशबू को रुकने को कहा होता