भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे देखने है / नवनीत पाण्डे

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:57, 4 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>मुझे देखने है सारे अदेखे दृष्य मुझे जानने है सारे अज्ञाने ज्ञा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे देखने है
सारे अदेखे दृष्य
मुझे जानने है
सारे अज्ञाने ज्ञान
मुझे समेटने है
सारे बिखराव
बस इसी एक आस में
बैठा हूं कब से
इस नंगधड़ंग तार पर
इस कबूतर के भीतर
कबूतर के भीतर का कबूतर
इस शोध में मेरे साथ है
मेरे भीतर बैठा है एक बंदर
मुझे याद है।