भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुझे प्रतीक्षा है / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<poem>
 
<poem>
  
 
+
'''मैं पाषाण-हृदय हूँ;'''
 
+
ऐसा मुझे मत बोलो प्रिय 
 +
पत्थरों से ही फूटती हैं धाराएँ
 +
पहाड़ियों का सीना चीर कर
 +
उन्मुक्त होकर तृप्त करती हैं
 +
प्यासे तन-मन, कण-कण को; 
 +
किन्तु इन्हें द्रवित करने को
 +
चाहिए- निश्छल भगीरथ-प्रयास
 +
शंकर सा अडिग, अदम्य साहस,
 +
जो पवित्र उफनती धाराओं को
 +
शिरोधार्य कर सके हँसते हुए।
 +
'''मैं चाहती हूँ द्रवित होना;'''
 +
किन्तु मुझे प्रतीक्षा है-
 +
निश्छल भगीरथ-शंकर की
 +
जो पिघला सके पाषाण- हृदय 
 +
और जलधारा में रूपांतरित 
 +
मेरे चिर-प्रवाह को सँभाले- सँवारे।
 +
वचनबद्ध हूँ- तृप्ति हेतु ; किन्तु
 +
'''तुम भगीरथ-शिव बनने का
 +
वचन दे सकोगे क्या प्रिय ?'''
 +
'''-0-'''
  
 
</poem>
 
</poem>

11:59, 28 मार्च 2018 के समय का अवतरण


मैं पाषाण-हृदय हूँ;
ऐसा मुझे मत बोलो प्रिय
पत्थरों से ही फूटती हैं धाराएँ
पहाड़ियों का सीना चीर कर
उन्मुक्त होकर तृप्त करती हैं
प्यासे तन-मन, कण-कण को;
किन्तु इन्हें द्रवित करने को
चाहिए- निश्छल भगीरथ-प्रयास
शंकर सा अडिग, अदम्य साहस,
जो पवित्र उफनती धाराओं को
शिरोधार्य कर सके हँसते हुए।
मैं चाहती हूँ द्रवित होना;
किन्तु मुझे प्रतीक्षा है-
निश्छल भगीरथ-शंकर की
जो पिघला सके पाषाण- हृदय
और जलधारा में रूपांतरित
मेरे चिर-प्रवाह को सँभाले- सँवारे।
वचनबद्ध हूँ- तृप्ति हेतु ; किन्तु
तुम भगीरथ-शिव बनने का
वचन दे सकोगे क्या प्रिय ?
-0-