"मुस्कानों के बीज-नव वर्ष के दोहे / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु" के अवतरणों में अंतर
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+ | पलकों के तट चूमकर, कहे नयन-जलधार । | ||
+ | बीते हैं पल दर्द के, हुआ नया भिनसार ।। | ||
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+ | ख़ुशियाँ दो पल जो मिलें, लेकर दुख भी झेल ।। | ||
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+ | अब खूँटी पर टाँग दे, नफ़रत-भरी कमीज़ । | ||
+ | बोना है नव वर्ष में, मुस्कानों के बीज ।। | ||
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− | सबके आँगन में खिले , फूलों का संसार | + | सबके आँगन में खिले, फूलों का संसार ।। |
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नए साल से हम कहें-करलो दुआ कुबूल । | नए साल से हम कहें-करलो दुआ कुबूल । | ||
− | + | माफ़ करें हर एक की, जो-जो खटकी भूल ।। | |
− | मुड़-मुड़कर क्या देखना , पीछे उड़ती धूल । | + | |
− | फूलों की खेती करो , हट जाएँगे शूल | + | मुड़-मुड़कर क्या देखना, पीछे उड़ती धूल । |
− | अधरों पर मुस्कान ले , कहता है नव वर्ष । | + | फूलों की खेती करो, हट जाएँगे शूल ।। |
− | छोड़ उदासी को यहाँ ,आ पहुँचा है हर्ष । ।''' | + | |
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+ | जितनी खुद से है हमें ,जीवन की हर आस । | ||
+ | उससे भी ज़्यादा हमें, तुम पर है विश्वास । | ||
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+ | जिसके मन में नेह है,सच्ची है हर साँस। | ||
+ | और मीत से प्यार है, वह पहले ही पास । | ||
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+ | तुम जैसे होंगे जहाँ ,इस धरती पर लोग ॥ | ||
+ | स्वर्ग बनेगे घर -नगर , मिट जाएँगे सोग ॥ | ||
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+ | '''30/5/11''' | ||
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22:09, 15 अप्रैल 2019 के समय का अवतरण
पलकों के तट चूमकर, कहे नयन-जलधार ।
बीते हैं पल दर्द के, हुआ नया भिनसार ।।
जीवन कहते हैं जिसे, है सुख-दुख का मेल ।
ख़ुशियाँ दो पल जो मिलें, लेकर दुख भी झेल ।।
अब खूँटी पर टाँग दे, नफ़रत-भरी कमीज़ ।
बोना है नव वर्ष में, मुस्कानों के बीज ।।
भाई ने परदेस से, किया बहिन को फोन ।
तेरी खुशियों से बड़ा, मेरा जग में कौन ।।
घर में या परदेस में ,सबसे मुझको प्यार ।
सबके आँगन में खिले, फूलों का संसार ।।
नए साल से हम कहें-करलो दुआ कुबूल ।
माफ़ करें हर एक की, जो-जो खटकी भूल ।।
मुड़-मुड़कर क्या देखना, पीछे उड़ती धूल ।
फूलों की खेती करो, हट जाएँगे शूल ।।
अधरों पर मुस्कान ले, कहता है नव वर्ष ।
छोड़ उदासी को यहाँ, आ पहुँचा है हर्ष ।।
जितनी खुद से है हमें ,जीवन की हर आस ।
उससे भी ज़्यादा हमें, तुम पर है विश्वास ।
जिसके मन में नेह है,सच्ची है हर साँस।
और मीत से प्यार है, वह पहले ही पास ।
तुम जैसे होंगे जहाँ ,इस धरती पर लोग ॥
स्वर्ग बनेगे घर -नगर , मिट जाएँगे सोग ॥
30/5/11