भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुस्कुराऊंगा,गुनगुनाऊंगा / रमेश 'कँवल'

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:28, 23 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुस्कराउंगा, गुनगुनाउंगा
मैं तेरा हौसला बढ़ाउंगा

रूठने की अदा निराली है
जब तू रूठेगा, मैं मनाउंगा

क़ुरबतों के चिराग़ गुल करके
फ़ासलों के दिये जलाउंगा

जुगनुओं-सालिबास पहनूंगा
तेरी आंखों में झिलमिलाउंगा

मेहर बांहो गाजबवो जाने-'कंवल’
उसकी गुस्ताखियां गिनाउंगा