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मुस्कुराऊंगा,गुनगुनाऊंगा / रमेश 'कँवल'
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मुस्कराउंगा, गुनगुनाउंगा
मैं तेरा हौसला बढ़ाउंगा
रूठने की अदा निराली है
जब तू रूठेगा, मैं मनाउंगा
क़ुरबतों के चिराग़ गुल करके
फ़ासलों के दिये जलाउंगा
जुगनुओं-सालिबास पहनूंगा
तेरी आंखों में झिलमिलाउंगा
मेहर बांहो गाजबवो जाने-'कंवल’
उसकी गुस्ताखियां गिनाउंगा