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मुस्कुराता है हत्यारा / भरत प्रसाद

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हत्यारे आजकल हत्यारे नहीं लगते
हिंसक नहीं दिखते
अपराधी भी नहीं
अनपढ़ तो बिल्कुल नहीं
सिर से पाँव तक आदर्श की प्रतिमा लगते हैं हत्यारे
वे ख़ूब समझते हैं प्राणों की क़ीमत
उन्हें पता है, मौत का दर्द
इंसानियत का ऐसा कोई पाठ नहीं
जो उनकी समझ से बाहर हो

परन्तु इन्हीं के पैरों तले मर रही है पृथ्वी
इन्हीं की छायाएँ नाच रही हैं लाल धरती पर
इतिहास के पन्ने-दर-पन्ने पर
पंजों के निशान
नफ़रत फूटती है इनकी आँखों से
साहसी आँखों के ख़िलाफ़
दहकती है सीने में
तनी हुई गर्दनों की प्यास

हत्यारे कभी रोते नहीं
जल्दी हँसते भी नहीं
बस मुस्कुरा देते हैं,
अपने सपनों की सफलता पर
कभी भी, कहीं भी
किसी भी देश और किसी भी युग में
छाया की तरह होते हैं हत्यारे
हत्या से अधिक भयानक होती है
हत्यारों की मुस्कान।