भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेमनों का रूप / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:35, 4 नवम्बर 2022 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भेड़िए
बैठे हुए हैं
मेमनों का रूप धारे।

छोड़ दें
किसके भरोसे
मृगशावक भावनाएँ
साँझ होने पर घर को
लौटकर आएँ न आएँ,
बन्द करें
कैसे भला हम
इस घर के
द्वार सारे ।

लिखे हुए हैं
दोष जितने
इस अकेले नाम पर,
हम अभी तक जी रहे हैं
उन्हीं के
परिणाम पर,
दे सकेंगे
 साथ कैसे
टूटते
घायल किनारे।
-0-