भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरा भी तो मन करता है / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश व्योम}} Category:बाल-कविताएँ मेरा भी तो मन करता है मै...)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=जगदीश व्योम}}
 
|रचनाकार=जगदीश व्योम}}
[[Category:बाल-कविताएँ]]
+
{{KKCatBaalKavita}}
 +
<poem>
 +
 
  
 
मेरा भी तो मन करता है
 
मेरा भी तो मन करता है
पंक्ति 65: पंक्ति 67:
  
 
होती कुछ बात निराली।।
 
होती कुछ बात निराली।।
 +
</poem>

07:54, 16 अप्रैल 2010 का अवतरण



मेरा भी तो मन करता है

मैं भी पढ़ने जाऊँ

अच्छे कपड़े पहन

पीठ पर बस्ता भी लटकाऊँ


क्यों अम्मा औरों के घर

झाडू-पोंछा करती है

बर्तन मलती, कपड़े धोती

पानी भी भरती है


अम्मा कहती रोज

`बीनकर कूड़ा-कचरा लाओ'

लेकिन मेरा मन कहता है

`अम्मा मुझे पढाओ'


कल्लन कल बोला-

बच्चू! मत देखो ऐसे सपने

दूर बहुत है चाँद

हाथ हैं छोटे-छोटे अपने


लेकिन मैंने सुना

हमारे लिए बहुत कुछ आता

हमें नहीं मिलता

रस्ते में कोई चट कर जाता


डौली कहती है

बच्चों की बहुत किताबें छपती

सजी- धजी दूकानों में

शीशे के भीतर रहतीं


मिल पातीं यदि हमें किताबें

सुन्दर चित्रों वाली

फिर तो अपनी भी यूँ ही

होती कुछ बात निराली।।