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"मेरा समय / नवनीत पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

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<poem>अगर मैं कहीं हूं
 
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तो होगा ही
 
तो होगा ही

04:50, 28 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

अगर मैं कहीं हूं
तो होगा ही
मेरा एक समय अपना
जैसा कि होता है सबका अपना समय
कहीं एक मिनट आगे
कहीं एक मिनट पीछे
कहीं सैकेण्ड-दो सैकेण्ड का ही रहता है अंतर
कहीं घण्टों हो जाता है नीचे-ऊपर
हर कलाई पर बंधा है समय
अलग-अलग समय
सबका अपना समय
सच है
किसी का समय
नहीं मिलता किसी के समय से
जैसे कि
मेरा भी समय नहीं मिलता आप से
पर मेरी घड़ी सही नहीं है
सिद्ध नहीं कर सकते आप!